जाने कैसी मजबूरी है, उसी को भुलाना पड़ रहा है ....
यादों को तो मिटा नहीं सकता, ख़त जलाना पड़ रहा है ...
दर्द ऐसा है, सबको दिखा भी नहीं सकता ....
जहाँ पे आंसू आकर थम गए हैं, वही से मुस्कुराना पड़ रहा है ...
उससे दूर न रह पाने की कुछ ऐसी बेबसी है ...
जहाँ पे दफ्न कर दिया माझी, वही पे घर बनाना पड़ रहा है...
बहाने याद थे बहुत मुझको मगर ...
न जाने कैसा भोलापन है उन आखों में, बहुत छोटा बहाना पड़ रहा है .....
यह स्तम्भ एक प्रयास है, अपनी कुछ अनुदित रचनाओं को स्वजनों तक पहुचाने का...
आपकी टिप्पड़ियां अपेक्षित हैं, जो इस सफ़र में मेरी मार्गदर्शक होंगी ...
आपकी टिप्पड़ियां अपेक्षित हैं, जो इस सफ़र में मेरी मार्गदर्शक होंगी ...
Sunday, July 18, 2010
प्यार जिंदगी और गम
अगर जिंदगी में गम नहीं होते |
तो शायद हम हम नहीं होते |
ये माना की कहानी अधूरी रह गयी |
लकिन प्यार के दो पल भी कम नहीं होते |
तो शायद हम हम नहीं होते |
ये माना की कहानी अधूरी रह गयी |
लकिन प्यार के दो पल भी कम नहीं होते |
एक अनजान शहर और मै
फिर से एक जख्म रिसता सा लगता है |
इस शहर से कोई रिश्ता सा लगता है |
ऊपर से हम साबुत से लगते हैं |
भीतर ही भीतर कुछ पिसता सा लगता है |
इस शहर से कोई रिश्ता सा लगता है |
ऊपर से हम साबुत से लगते हैं |
भीतर ही भीतर कुछ पिसता सा लगता है |
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